नियमों के भंवर जाल में फंसी चैंबर चुनाव समिति, कल शुक्रवार को बैठक कर लेगी अंतर्विरोधों पर निर्णय!

आगरा, 20 फरवरी। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स आगरा के वार्षिक चुनावों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हुए तीन दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी चुनाव संबंधी नियमों को लेकर प्रत्याशियों के बीच दुविधा बनी हुई है। कुछ नियमों पर चुनाव समिति में भी असमंजस की स्थिति बन गई है। इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए चुनाव समिति शुक्रवार 21 फरवरी को बैठक करने जा रही है।
चैंबर में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष के एक-एक पद, उपाध्यक्ष के दो और कार्यकारिणी सदस्य के 32 पदों के लिए चुनाव होने हैं। 17 से 23 फरवरी के बीच नामांकन भरे जाने हैं। इन पदों के दावेदारों ने नामांकन पत्र लेना भी शुरू कर दिया है। 
इस बीच चुनाव समिति द्वारा नियम भी जारी कर दिए गए हैं। पहले बिंदु पर न केवल प्रत्याशी बल्कि चुनाव समिति के कुछ सदस्य ही सहज नहीं हैं। इस बिंदु में कहा गया है कि "कोई भी वाणिज्यिक प्रकाशन अर्थात मुद्रित अथवा इलेक्ट्रोनिक मीडिया, होर्डिंग, पोस्टर, बैनर आदि द्वारा प्रचार की अनुमति नहीं है। हालांकि परिचयात्मक पत्र, पम्पलेट्स को अनुमति प्राप्त है। अगर कोई प्रत्याशी इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा तो उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।" साथ ही प्रत्याशी सोशल मीडिया व्हाट्सएप संदेशों से अपना अकेले का प्रचार कर सकता है। पैनल के प्रचार की अनुमति नहीं है।
इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं कि जब प्रत्याशी परिचयात्मक पत्र, पम्पलेट्स पर धनराशि खर्च कर सकता है तो मीडिया साइटों में प्रचार क्यों नहीं कर सकता। खासतौर पर जब व्हाट्सएप पर संदेश भेजने की अनुमति है तो इसी कार्य को सोशल मीडिया साइटों के माध्यमों से कराने पर आपत्ति क्यों है? या तो सभी तरह का लिखित प्रचार बंद कराया जाए, या फिर उसकी अनुमति दी जाए।
चुनाव समिति के एक-दो सदस्यों ने भी स्वीकार किया कि यह नियम व्यवहारिक नहीं है। उन्होंने सवाल किया कि किसी विरोधी ने अपना धन खर्च कर प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी का विज्ञापन निकलवा दिया तो उसका तो नामांकन ही खारिज हो जाएगा। इस सवाल के जवाब में चुनाव समिति के जिम्मेदारों का कहना है कि अयोग्य घोषित करने से पहले प्रत्याशी से लिखित स्पष्टीकरण मांगा जाएगा, उसके द्वारा लिखित में विज्ञापन न करने की जानकारी देने पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा। लेकिन इस पर भी यह सवाल उठता है कि यदि प्रत्याशी खुद ही अपना विज्ञापन निकलवा दे और कह दे कि उसने नहीं निकलवाया है तो उस स्थिति में चुनाव समिति क्या निर्णय लेगी। यही स्थिति पैनल का प्रचार करने पर भी बनेगी।
पूर्व के वर्षों में चुनाव समिति में रह चुके एक पूर्व अध्यक्ष का मानना है कि यह नियम उस समय सामयिक था, जब केवल अखबारों में महंगे विज्ञापन छपा करते थे और नियम इसलिए था कि कोई भी प्रत्याशी धनबल का प्रयोग करके चुनाव को प्रभावित न कर दे। अब सोशल मीडिया के जमाने में इस नियम की प्रासंगिकता कम रह गई है। जब प्रत्याशी को व्हाट्सएप संदेशों की छूट दी जा रही है तो सोशल मीडिया साइटों पर प्रचार की भी छूट होनी चाहिए।
इसी प्रकार वर्तमान चुनाव समिति ने कार्यकारिणी सदस्यों के लिए परचा भरने वालों की लिए तय किया कि उनके प्रस्तावक भी उसी ग्रुप के होने चाहिए जिससे वे पर्चा भर रहे हैं। इसे लेकर भी प्रत्याशी आपत्ति कर रहे हैं। बल्कि एक प्रत्याशी ने तो नामांकन पत्र लेने के बाद उसे भरने से ही इनकार कर दिया। दावेदारों का कहना है कि जब चैंबर संविधान में यह बाध्यता नहीं है और न इसे पिछले वर्षों में लागू किया गया तो फिर इस बार इसे क्यों लागू किया जा रहा है। 
यह भी सवाल उठ रहे हैं कि नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के पांचवें दिन चुनाव समिति इन दुविधाओं पर विचार करेगी तो इस दौरान जो प्रत्याशी नामांकन पत्र जमा कर चुके होंगे उनके बारे में क्या निर्णय होगा?
समिति का कहना है कि ऐसे प्रत्याशियों के पर्चे में सुधार करा लिया जाएगा। इस पर भी एक सदस्य की आपत्ति है कि यदि नामांकन पत्रों को सुधारने का मौका दे दिया गया तो सभी इस कार्य को करना चाहेंगे और ऐसे में पारदर्शिता कहां रह पाएगी।
खैर! सभी सवालों के जवाब शुक्रवार को प्रस्तावित बैठक में छिपे हैं। देखना होगा कि चुनाव समिति क्या तय करती है।
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