"आतंकों से लड़ने के संकल्प कड़े करने होंगे," - कवि सम्मेलन में छा गए ओज के शिखर कवि डॉ. हरिओम पवार
आगरा, 22 फरवरी। सत्य कलम की शक्तिपीठ है, राजधर्म पर बोलेगी। वर्तमान के अपराधों को समय तुला पर तोलेगी। पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जाएंगे। इतिहासों के पन्नों में वे सब कायर कहलाएंगे। आतंकों से लड़ने के संकल्प कड़े करने होंगे। हत्यारे हाथों से अपने हाथ बड़े करने होंगे..
शनिवार रात सूरसदन में ताज महोत्सव के अंतर्गत आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में ओज एवं शौर्य के हिमालय डॉ. हरिओम पवार ने जब इन पंक्तियों को पढ़ा तो सूरसदन सभागार में देशभक्ति का ज्वार उमड़ पड़ा।
उन्होंने घुसपैठियों को संरक्षण प्रदान करने वाली सरकार के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा- " पंडित अपना घर छिनने का दर्द समेटे बैठे हैं। लेकिन घुसपैठी भारत के वोटर बनकर बैठे हैं। ऐसा तुष्टीकरण सरासर वोट मोह की घटना है। घुसपैठी का वाटर बनना देशद्रोह की घटना है.."
इससे पूर्व, केंद्रीय राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल, कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य, जिलाधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी, डीसीपी सिटी सूरज राय, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी शक्ति सिंह और कार्यक्रम संयोजक डीजीसी रेवेन्यू अशोक चौबे ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया।
आगरा का नाम देश-दुनिया में रोशन करने वाली डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने समां बांध दिया-"पुण्य चरणों की रज हो गया। भावनाओं का ध्वज हो गया।राधिका कृष्ण इक हो गए, प्रेम का नाम ब्रज हो गया।"
सुदीप भोला ने सबको तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया- "पापा ने हैप्पी बड्डे पर मोबाइल दिलवाया था।ऑनलाइन हो गई पढ़ाई, किश्तों पर मंगवाया था। पढ़ो बेटियो बढ़ो बेटियो उनने मन में ठाना था। दुनिया कर लेगी मुट्ठी में दुनिया को दिखलाना था। उसी मोबाइल से वो लड़की इंस्टाग्राम चलाती है। पढ़ती नहीं, पढ़ाती है दिन भर रील बनाती है.."
सुमित ओरछा की यह पंक्तियां सीधे दिल में उतर गईं- " नैया को विपरीत धार के खेना खेना सिखलाया। राम का जीवन है जिसने बस देना-देना सिखलाया.."
डॉ. आशुतोष त्रिपाठी ने अपना परिचय कुछ इस तरह दिया- " आशुतोष हूँ,अड़ जाता हूँ..! कितनी आँखों गड़ जाता हूँ..! मुँह पर ही सच कह जाता हूँ.. इसलिए अकेला रह जाता हूँ..!!
मनु वैशाली के इस मुक्तक पर सब झूम उठे- " उलझे उलझे हैं सुलझा लो, सिद्ध सरल हो जायेंगे। पूर्णफलित या समाकालित या फिर अवकल हो जायेंगे। सिर्फ निरंतरता रखना तुम और जरा सा संयम भी।अंकगणित के प्रश्नों जैसे हैं हम हल हो जायेंगे !"
राजेश अग्रवाल ने अपनों से जुड़े रहने का बेहतर संदेश दिया- " जो अपने संग होते हैं सुखी संसार लगता है। कोई जो बोल दे हँसकर वही उपहार लगता है। किसी की आँख में आँसू नहीं देना मेरे दाता। जो पल खुशियों भरा बीते वही त्योहार लगता है।"
कवि सम्मेलन का बेहतरीन संचालन कर रहे शशिकांत यादव के तेवर भी दिल छू गए- "तोला से मन भर तोला है। पारा पानी में घोला है। सब कीड़े बाहर निकले हैं। चुटकी भर तो सच बोला है।"
मुकेश मणिकांचन ने इन पंक्तियों से भाव विभोर कर दिया- "आह पे पाबंदियां हैं वाह पे पाबंदियां हैं। जा रही जो द्वार तेरे राह पे पाबंदियां हैं। यह सफर पूरा करेंगे हौसला तुम भी रखो। तोड़ देंगे एक दिन जो चाह पे पाबंदियां हैं।"
शंभू शिखर के विशिष्ट और चुटीले अंदाज़ ने सबको लोटपोट कर दिया। गजेंद्र प्रियांशु, स्वयं श्रीवास्तव और गौरव चौहान ने भी सभागार को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
आगरा के कुमार ललित की इन पंक्तियों को भी सबका स्नेह मिला- " लोग आते न हों, नेह नाते न हों, मैं वहाँ पर ठहरना नहीं चाहता। छोड़ आया हूँ मैं जिस गली को कभी, उस गली से गुज़रना नहीं चाहता। प्यार की राह में बस यही चाह है, मैं किसी को अखरना नहीं चाहता। ऊबकर चाहता हूँ उबरना मगर, डूबकर मैं उबरना नहीं चाहता।"
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