कुमार विश्वास ने खुद बताया- कविता के मंच से राम कथा के मंच पर क्यों गए || कथा वाचक का पहनावा और कवि की व्यंग्यात्मक शैली में भक्ति, गीत, व्यंग्य और समाज के लिए संदेश, सबकुछ दिखा "अपने अपने राम" में
आगरा, 18 जनवरी। प्रेम गीतों की रचना और उनके सुमधुर गायन से युवाओं के दिलों में खास जगह बना चुके जाने-माने कवि डॉ कुमार विश्वास ने कविता के मंच से राम मंच की ओर कदम बढ़ाया और कुशल वक्ता के रूप में भी उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया। प्रेम गीत से अध्यात्म की ओर उन्होंने क्यों कदम बढ़ाए इसका खुलासा स्वयं कुमार विश्वास ने आगरा में शनिवार को किया।
फतेहाबाद रोड पर ताजनगरी फेस टू स्थित जेपी वेडिंग स्क्वायर में आयोजित द्विदिवसीय कार्यक्रम "अपने-अपने राम" के पहले दिन कुमार विश्वास ने कहा कि समाज में संस्कारों का तेजी से अभाव होता जा रहा है। सभ्य समाज कहलाने वाले लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाना पसंद करते हैं, नई पीढ़ी सनातन संस्कृति से विमुख होती जा रही है। ऐसे में किसी को तो इस संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना ही होगा। कुछ लोग इसके लिए प्रयास कर भी रहे हैं। कुमार विश्वास ने भी ऐसे ही लोगों की श्रेणी में स्वयं को खड़ा करने का निश्चय किया और राम कथा को तार्किक ढंग से लोगों को सुनाना शुरू किया। इसका उद्देश्य है- नई पीढ़ी को अपने संस्कारों से जोड़े रखना।
हालांकि वह स्वयं को राम कथा वाचक नहीं कहते और न ही मंच पर अपने बैठने के स्थान को व्यास पीठ कहते हैं। हालांकि किसी कथा व्यास पीठ की तरह ही लंबे-चौड़े मंच पर उनका एकल सिंहासन लगाया जाता है और उनके विराजने के बाद सहयोगी कलाकार मंच पर नजर नहीं आते हैं केवल पार्श्व में उनका गायन, वादन गूंजता रहता है। कुमार विश्वास कहते हैं कि वे तो केवल उद्घोषक मात्र हैं। कवि कुमार विश्वास कुर्ता, धोती पहने और एक कंधे पर उत्तरीय डाले किसी कथा वाचक की तरह ही मंच पर आते हैं और ईश्वर की संगीतमय स्तुति के बाद श्रोताओं को संस्कारों के प्रति जागरूक करना शुरू करते हैं। इसके लिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन के प्रसंगों का सहारा लेते हैं। वे समझाने का प्रयास करते हैं कि ईश्वर सर्वोपरि है, उसकी सत्ता को चुनौती नहीं दी जा सकती। वे कहते हैं कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का समय है। पश्चिम का षड्यंत्र है हमारे परिवार और संस्कार को खत्म करना। अगर आपके घर में राम रहे, राम की कथा रही तो हमारे परिवार और हमारे संस्कार सुरक्षित रहेंगे।
करीब ढाई घंटे के उद्बोधन में कुमार विश्वास का कवि हृदय भी कई बार कविता और उनकी पुरानी शैली के रूप में सामने आता है। वे रामचरित मानस की चौपाइयों के माध्यम से लोगों को राम का चरित्र समझाते-समझाते धार्मिक गीतों को स्वर दे उठते हैं और कई बार कवि की शैली में पूरी दर्शक दीर्घा का समर्थन मांगते हैं। एक कवि की तरह राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर बेबाक टिप्पणी करते नजर आते हैं। सत्ता दल हो या विपक्षी दल वे किसी को भी लपेटने में संकोच नहीं करते। वे कहते हैं कि राम किसी पार्टी की बपौती नहीं, राम इस देश की आत्मा हैं।
कभी वे देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयंत की कथा सुनाकर सत्ताधीशों पर व्यंग्य वाण छोड़ते हैं तो कभी औरंगजेब और शाहजहां का प्रसंग सुनाकर हिन्दू धर्म की महानता का वर्णन करते हैं। सनातन संस्कृति और महाकुंभ पर सवाल उठाने वालों को भी कुमार विश्वास बेहद तार्किक ढंग से जवाब देते हैं। वे कहते हैं कि विज्ञान जहां आज पहुंचा है या जहां आज भी नहीं पहुंच पाया है अध्यात्म वहां सदियों पहले पहुंच गया था। विज्ञान वाले वर्ष 2020 में गॉड पार्टिकल ढूंढ कर लाए जबकि हमने हजारों वर्ष पहले ही कह दिया था कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान है। भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन पार्टियों ने राम के काल्पनिक होने का हलफनामा कोर्ट में दिया, आज वह खुद काल्पनिक हो गईं। पांच सौ वर्ष पहले बगदाद के जो लुटेरे हमारे मंदिरों को तोड़कर सोना हीरा लूट कर ले जाना चाहते थे, उनके हाथ में आज भी कटोरा है और अयोध्या में राम के माथे पर आज भी करोड़ों का हीरा है।
कुमार विश्वास समाजसेवा के नाम पर दिखावा करने वालों की खिंचाई करने से भी नहीं चूकते। वे कहते हैं कि पहले चलन था 'नेकी कर दरिया में डाल', पर अब हो गया है 'नेकी कर फेसबुक पर डाल..।' समाज को दिशा देने का प्रयास करते हुए कुमार ने कहा कि आज नेटफ्लिक्स और अमेजॉन के साथ-साथ टीवी सीरियल्स द्वारा घरों में षडयंत्र रचने वाली बहुएं तैयार की जा रही हैं, इन्हें उर्मिला की कहानी कौन सुनाएगा। भगवान राम की कहानी अद्भुत कहानी है। इससे अपने घर में बच्चों को अछूत न करें। कथा सुनकर अगर दो भाई पास आ सकें तो समझो कि राम कथा सुनने का फायदा हुआ। तुम्हारे घर में करोड़ों का ज्ञान भरा पड़ा है और तुम पश्चिम की रील देख रहे हो, जहां कुछ भी सार्थक नहीं है। जिसने रामचरित मानस पढ़ ली, गीता पढ़ ली, फिर उसे किसी और किताब को पढ़ने की जरूरत नहीं है।
कुमार विश्वास ने मंदिर-मस्जिद पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा- कोई भी धर्म इस बात की इजाजत नहीं देता कि दूसरे के धर्म स्थल को तोड़कर अपने धर्म स्थल बनाओ। मुझे एक गुरुद्वारा ऐसा दिखा दो, किसी और धर्म स्थान को तोड़कर बनाया गया हो, जैन धर्म के लोग क्षत्रियों के वंशज हैं। उनका मंदिर भी किसी धर्मस्थल को तोड़ कर नहीं बना। बगदाद वालों से पूछो कि अगर अपने धर्म का प्रचार करना था तो किसने शर्त लगाई थी कि पहले दूसरे के धर्म स्थल तोड़ो, फिर अपने बनाओ।
डा कुमार विश्वास के उद्बोधन से पहले उत्तराखंड से आई नीरजा उप्रेती ने कार्यक्रम की लोकप्रिय भजन " श्रीराम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में" शुरुआत की। अंकिशा श्रीवास्तव ने अगला भजन "पार न लगोगे श्रीराम के बिना" सुनाया। इसके बाद नीरजा उप्रेती ने एक बार फिर सुमधुर भजन सुनाया - "रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया।" प्रख्यात कवयित्री कविता तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया।
केंद्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल, प्रदेश की कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य, राज्यसभा सांसद नवीन जैन, कानपुर के सांसद रमेश अवस्थी, श्रीराम सेवा मिशन के उपाध्यक्ष अजय अग्रवाल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस दौरान सचिन अवस्थी, शुभम अवस्थी, संजय गोयल (स्पीड कलर लैब), वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग सिन्हा, मधुर गर्ग, अनिल वर्मा एडवोकेट, जिला जज विवेक सिंघल, अशोक चौबे डीजीसी और रमेश मुस्कान भी प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
____________________________________
Post a Comment
0 Comments