महानाट्य “चक्रव्यूह” में नीतिश भारद्वाज ने जीवंत की योगेश्वर श्रीकृष्ण की छवि || आध्यात्मिक चेतना, कला और संस्कृति ज्ञान से वर्तमान युग के चक्रव्यूह से निकलने का संदेश

आगरा, 05 जनवरी। सूरसदन प्रेक्षागृह में रविवार को जीवंत हुआ द्वापर का वो क्षण जब अपनों ने ही वध किया था अपने ही वंश का। हरिद्वार में कुष्ठ रोगियों एवं अन्य सेवा प्रकल्पों को समर्पित दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा आयोजित महानाट्य "चक्रव्यूह" का आगरा में मंचन हुआ। 
महानाट्य के सूत्रधार स्वयं चक्रधारी श्रीकृष्ण थे। श्रीकृष्ण की छवि को जीवंत करते हुए नीतिश भारद्वाज अपने छंदमय संवाद से हर दर्शक को स्तब्ध कर रहे थे। नीतिश टीवी धारावाहिक महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका निभाकर करोड़ों भारतीयों के दिल में विशेष जगह बना चुके हैं।
नाटक में दिखाया गया कि एक के बाद एक हार के क्षणाें से गुजर रहे कौरवों में खलबली मची है। दुर्योधन भीष्म पितामाह, गुरु द्रोणाचार्य जैसे महारथियों जो कुरुवंश को समर्पित हैं, उन पर आक्षेप लगाता है कि आपकी निष्ठा पर संदेह सा हो जाता, बाण आपका एक भी क्योंकि लक्ष्य भेद नहीं पाता। फिर चक्रव्यूह रचा गया, 16 वर्ष के बालक अभिमन्यु का पुरुषार्थ देख सात कुरुवंशियों के मन का भय भी घबरा गया। अभिमन्यु के वध के मार्मिक दृश्यों ने दर्शकों के नेत्र सजल कर दिए। गर्भवती उत्तरा की वेदना को विराम देते हुए श्रीकृष्ण ने जब कहा कि तू अभिमन्यु की अर्धांगिनी है, तुझे अंधकार नहीं छलता है। कहा कि जब एक मां को बालक का एकाकी पालन करना हो तो साथ प्रकृति के पौरुष को आवश्यक है जीवित करना। तेरा पुरुष तुझी में है, वो छिपा प्रकृति छाया, हर युग में शिशुओं की खातिर मांओं का पौरुष निखर आया।  
जीवन के चक्रव्यूह को भेदने की सीख देते हुए जब श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्म बंधन और स्वयं के निर्णय ही चक्रव्यूह की रचना करते हैं। स्वयं भगवान भी जीवन में होने वाले महाभारत को नहीं रोक सकते हैं। 
महानाट्य चक्रव्यूह के लेखक एवं निर्देशक अतुल सत्य कौशिक ने कहा कि महानाट्य को श्रीकृष्ण के दृष्टिकोण से लिखा गया। देशभर में 100 से भी अधिक बार इसका मंचन हो चुका है। महानाट्य में अभिमन्यु साहिल छावड़ा और अर्जुन की पत्नी उत्तरा भूमिका में सुषमिता मेहता ने दर्शकों का मन जीत लिया। 
इससे पूर्व महानाट्य का शुभारंभ राष्ट्रगान एवं मां भारती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन से हुआ। संस्थापक अध्यक्ष आशीष गौतम, डॉ प्रमोद शर्मा, संजय चतुर्वेदी, केंद्र राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल, सांसद राजकुमार चाहर, राज्यसभा सांसद नवीन जैन, कैबिनेट मंत्री बेबी रानी माैर्य, उप्र लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष राकेश गर्ग, 
आनंद, मंडलायुक्त ऋतु माहेश्वरी, जिलाधिकारी जे रविंद्र गौड़, दीपक ऋषि, सोम कुमार मित्तल, संजीव माहेश्वरी, संजय अग्रवाल, प्रमोद सारस्वत, उमेश गर्ग ने दीप प्रज्ज्वलित किया।
सहयोगी समाज सेवी संस्थाओं एवं सहयोगियों का सम्मान किया गया। संस्थापक अध्यक्ष डॉ आशीष गौतम ने संस्था के उद्देश्याें काे रखा। क्षेत्रीय कार्यवाह आरएसएस डॉ. प्रमोद शर्मा एवं विभाग प्रचारक आनंद ने कार्यक्रम की महत्ता पर प्रकाश डाला। स्वागत मंत्री अभिनव मौर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन संयोजक मनीष अग्रवाल और सह संयोजक ललित शर्मा ने किया। 
महानाट्य का यह था सार 
"चक्रव्यूह" के माध्यम से संदेश दिया गया कि चक्रव्यूह केवल यक युद्ध कला तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण जीवन दर्शन के स्तर को समझने की ओर प्रेरित करता है। नाटक में कुरुक्षेत्र की रक्त रंजित धरा को संबोधित करते हुए संदेश देने का कार्य किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आने वाले युगों में कुरुक्षेत्र की धरती को बहुत से उत्तर देने होंगे। उन सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देना होगा जो भावी पीढ़ियां उनसे पूछने वाली हैं। अपनी माता के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने का अधूरा ज्ञान सीखने वाले अभिमन्यु के प्रश्न भी सम्मलित हैं। 
अंततः श्रीकृष्ण का शाश्वत सत्य संदेश कि कोई भी अपने कर्मों में रचे गए स्वयं के चक्रव्यूह से कभी मुक्त नहीं हो सकता है। हमारा संपूर्ण जीवन इस चक्रव्यूह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। सदकर्मों से जीवन रूप चक्रव्यूह को भेद कर विजयी होकर बाहर निकलना पड़ता है। 
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