यदि आप भी जा रहे हैं महाकुंभ में तो विकास चंचल के अनुभव जरूर पढ़िए! कैसे हैं इंतजाम, कितना चलना पड़ेगा पैदल, क्या करें, क्या न करें

आगरा, 15 जनवरी। यदि आप भी संगम नगरी तीर्थराज प्रयाग में चल रहे महाकुंभ में जाने का मन बना रहे हैं तो हाथरस के निवासी विकास चंचल के अनुभव आपके लिए काम के हो सकते हैं। धार्मिक यात्राओं में रुचि रखने वाले विकास पेशे से बैंकर हैं और एक राष्ट्रीयकृत बैंक की आगरा स्थित एक शाखा में प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं। वे विगत दिवस ही महाकुंभ में स्नान करके लौटे हैं। उन्होंने अपने अनुभवों का वृतांत "न्यूज नजरिया" को लिख भेजा। निकट दिनों में प्रयागराज जाने का मन बना रहे श्रद्धालुओं के लिए उनके अनुभव काम आ सकते हैं। पढ़िए विकास चंचल के बिंदुवार अनुभव- 
1. ट्रेन या बस का रिजर्वेशन कन्फर्म हो, तभी यात्रा प्लान करें। मेरा हफ्ते भर पहले बुक कराया गया 20 वेटिंग का रिजर्वेशन दो-दो स्टाफ से कोटा लगवाने के बाद भी कन्फर्म नहीं हो पाया और चार घंटे पूर्व ऑटो कैंसिल हो गया।
2. प्रयाग में फ्री बस शटल सेवा ब्रांडिंग ज़्यादा, मददगार कम है। बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन से फ्री शटल बस लगाई गई हैं, पर उनमें व्यवस्था नहीं है। कौन सी जायेगी कौन सी नहीं जायेगी, कोई नंबर नहीं। भीड़ का रेला कभी एक बस में भरता, फिर दूसरी में, फिर उतरकर तीसरी में। बस वाला बाकायदा फ्री टिकट काटकर आपके हाथ में देता, पर जहां तक बस जा सकती है, उससे भी दो किमी पहले ही उतार देता है। बस स्टैंड से महज चार किमी की दूरी पर बस आपको उतार देगी।
3. बस से उतरकर आप चंद्रशेखर आज़ाद पार्क इत्यादि से गुजरते हुए वहां तक पहुंचेंगे, जहां से सारे वाहन चालकों पर रोक है।
4. यहां से पैदल मार्च शुरू होगा। पुलिस प्रशासन क्राउड मैनेजमेंट हेतु बीच-बीच में आपको और ज़्यादा घुमावदार रास्ते से भेजेगा।
5. घाट पहुंचने तक जिससे पूछेंगे, वह आपको घाट मुश्किल से 1.5 किमी से दो किमी बताएगा। ऐसा करते-करते आपसे न्यूनतम आठ से 10 किमी पदयात्रा करवाई ही जायेगी। कोई भी कैसा भी अन्य साधन नहीं मिलेगा, इसका आप मन बनाकर जाएं। साथ में समान केवल और केवल इतना लेकर जाएं, जितना आप 25 से 35 किमी पैदल यात्रा में लाद सकें। होटल की बुकिंग भी करेंगे, तो भी वहां तक तो सामान लादना ही होगा। 
6. गर्म कपड़े उतने ही लेकर जाएं, जितने की जरूरत हो, अन्यथा इतना पैदल चलने से कपड़े बोझ लगेंगे। वैसे एक पन्नी बिछाने हेतु, एक जर्सी, साथ में एक लोई, एक दरी/खेस नीचे बिछाने हेतु पर्याप्त है।
6. पैरो में जूते या चप्पल अपने कंफर्ट के हिसाब से पहनें, जिन्हें पहन कर आप इतने किलोमीटर पैदल चल सकें।
7. आठ से दस किमी की पदयात्रा के दौरान रास्ते में सभी तरह के बाजार और दुकान पड़ेंगी और ऐसी हर चीज़ जिसकी एक शहर में दुकानें होती हैं, सब आपको मिल जायेगी। हां, मेले के कारण उनकी कीमतें दोगुनी के करीब मिलेंगी।
8. फल फ्रूट्स से लेकर स्नैक्स, लंच, डिनर सबकी पर्याप्त दुकानें और होटल मिलते रहेंगे। 
9. आठ से दस किमी की यात्रा करके आप गंगा जी के घाट पहुचेंगे और भीड़ को वहीं स्नान करने हेतु ठेला जायेगा। यदि आप ज़्यादा धार्मिक हैं या मेरी तरह कभी- कभी ही मंदिर जाने वालों में से हैं और इस 144 साल बाद बने संयोग से एक बार में ही मोक्ष का रट्टा निबटाने की मंशा से कुंभ गए हैं, तो आप त्रिवेणी घाट तलाशेंगे। पुनः वहां जिस किसी से भी आप असली त्रिवेणी घाट पूछेंगे, वह आपको पुनः 1.5 किमी से दो किमी घाट के किनारे-किनारे बढ़ते जाने को बोलेगा। इस प्रकार पुनः आप लगभग पांच किमी चलने के पश्चात असली त्रिवेणी संगम वाले घाट पर पहुंचेंगे। अर्थात बस से उतरने के बाद एक तरफ से लगभग 15 किमी।
10. घाट पर भीड़ बहुत होगी। लगातार माइक पर सामान से लेकर बच्चे खोने के अनाउंसमेंट चल रहे होंगे। किसी-किसी का पूरा बैग गायब हुआ, वह किनारे बैठ कर सोच रहा था, स्नान कैसे करूं। बच्चे अधिकतर बांग्लाभाषी लोगों के ही खो रहे थे, यह मेरे समझ नहीं आया। संभावना है कि कुछ लोग माइक पर अनाउंसमेंट करवाकर मनोरंजन कर रहे हों। बस से हम सुबह 9.30 बजे उतरे थे और त्रिवेणी घाट पर दोपहर 12.30 पर पहुंचे। तीन घंटे हमने घाट पर बिताए, इन तीन घंटों में किसी की भी पत्नी खोने की कोई अनाउंसमेंट नहीं हुआ।
11. बच्चों और बुजुर्गों को ले जाना अवॉइड करें। इतना पैदल चलने का माद्दा हो तभी लेकर जाएं। आपको इतना पैदल चलना होगा जितने में गिर्राज जी (गोवर्धन) की आप दो परिक्रमा लगा लें। 
12. हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा निरंतर होती रहेगी।
13. घाटों पर सूखी फूस डालकर उसे बैठने, पानी सोखने और फिसलन हटाने के लिए बिछाया गया है, जो सराहनीय है।
14. घाटों पर भी पानी की बैरिकेडिंग की गई है। आप निश्चिंत होकर कमर तक पानी में बिना डर के डुबकी लगा सकते हो, हालांकि कमर तक पानी में ढंग से डुबकी भी नहीं लगेगी, पर सुरक्षा की दृष्टि से यह सही ही है।
15. घाटों पर स्वच्छता वॉलंटियर एक दौना भी दिख जाए तो उठाकर कूड़ेदान में डाल रहे हैं।
16. पूरे कुंभ क्षेत्र में पब्लिक टॉयलेट (Both M & F) और चेंजिंग बॉक्सेस पर्याप्त से कहीं अधिक मात्रा में हैं। बस उनकी सफाई उस प्रकार ही हो रही है, जैसी किसी बस स्टैंड के पब्लिक टॉयलेट की होती है।
17. रैन बसेरे, टैंट, प्राइवेट किराए के रूम 500 रुपये प्रतिदिन से लेकर 14,000 रुपये प्रतिदिन तक की दर पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। हालांकि यदि आपका कल्पवास का मन नहीं है, तो रात को यात्रा कीजिए सुबह प्रयागराज उतरिए, दिन में स्नान कीजिए, शाम को फिर अपने शहर की ट्रेन/बस पकड़िए। हम कॉटेज बुक करने के बाद भी वहां नहीं गए, क्योंकि वहां जाने हेतु त्रिवेणी घाट से और तीन किमी आगे पैदल चलना था।
18. शहर की लोकल बस सेवा ठप्प पाई गई। लौटने पर एक अलग exit बनाकर यातायात व्यवस्था बेहतर हो सकती थी, या शायद आगे की जाए। फिलहाल जैसे आए थे, वैसे ही 2-2 किमी के झांसे में चलते रहिए और पुनः 10 से 12 किमी चलने के बाद आप उस स्थान पर पहुंचेंगे, जहां बैटरी रिक्शा और लोकल बस मिल सकती हैं। पर मिलेंगी नहीं। न ही ओला, उबेर मिलेंगी। शेयरिंग ऑटो का जहां से रेलवे स्टेशन का किराया 30 रुपये लगता है, उसका ऑटो वाले केवट 300 रुपये प्रति सवारी लेंगे। हम स्वयं 200 रुपये प्रति सवारी में राज़ी करके एक ऑटो (जिसमे सात सवारी और थीं) में स्टेशन पहुंचे। खबर मिली कि अगले दिन तो लौटने में लोगों को स्टेशन तक पैदल आना पड़ा। यानी लौटने लौटने के 12 किमी में 10 से 12 किमी और जोड़ लीजिए।
19. पेयजल हेतु सरकार ने थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही निःशुल्क वाटर एटीएम लगाए हैं।
20. सुरक्षा व्यवस्था, एटीएस, एनडीआरएफ, ब्लैक कैट कमांडो की तैनाती पर्याप्त मात्रा में हैं। किंतु रैंडम बेसिस पर फ्रिस्किंग भी होनी चाहिए, जिसका नामोनिशान नहीं।
21. रेलवे स्टेशन पर ऐसा लगा कि चाय बैन है। इसलिए चाय जहां मिले, पी लीजिएगा, टालिएगा नहीं।
22. जितना पैसा इंतजामात पर खर्च हुआ है, उतना ही या उससे ज्यादा ब्रांडिंग पर हुआ लगता है।
23. अडानी से लेकर अन्य ब्रांड्स के होर्डिंग से शहर भरा हुआ, पर भंडारे वाले सब्ज़ी-पूरी का जो स्वर्गिक आनंद मथुरा-वृंदावन में सहज ही मिल जाता है, कुंभ में पोस्टर्स तक ही सीमित दिखा।
24. कुल मिलाकर सभी व्यवस्था अच्छी ही कही जाएगी, बस अति से ज्यादा पहले ही बैरिकेडिंग करने के कारण श्रृद्धालु बुरी तरह थक कर लौट रहे हैं। यह एक मात्र पहलू है, जिसको कुंभ प्रबंधन को तुरन्त संज्ञान में लेना चाहिए और शायद लिया भी जाये। अत्यधिक पैदल चलवाना (आने जाने में न्यूनतम 16 किमी से अधिकतक 35 किमी) और लौटने पर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पहुंचने का कोई साधन न मिलना कुंभ यात्रा के उत्साह को एक सुखद उत्साहपूर्ण तीर्थयात्रा बनाने में बाधा पैदा कर रहा है।
25. कहते हैं तीर्थ में तकलीफ़ नहीं देखी जाती, उस लिहाज़ से यात्रा उत्तम रही। जीवन भी एक तीर्थ है और संसार महाकुंभ।
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