सामूहिक जिम्मेदारी: आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर दुर्घटनाओं को रोकने की आवश्यकता

------- आलेख/नजरिया --------- 
लेखक - के सी जैन 
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर हुई दुःखद दुर्घटना, जिसमें पांच युवा डॉक्टरों की जान चली गई, ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है। यह केवल एक घटना नहीं है, बल्कि हमारे सड़क सुरक्षा तंत्र की कमजोरियों का कड़वा सच उजागर करती है। लेकिन सवाल यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या यह ड्राइवर है या उत्तर प्रदेश राज्य एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA)? सच्चाई यह है कि यह कई स्तरों पर सामूहिक चूक का परिणाम है।
ड्राइवर की भूमिका
दुर्घटना का मुख्य कारण ड्राइवर की झपकी और थकान बताया गया है। लेकिन क्या इसके लिए केवल ड्राइवर को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? जब हम किसी को देर रात ड्राइव करने के लिए कहते हैं, तो हम जानबूझकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे होते हैं। अध्ययनों और आंकड़ों से बार-बार यह साबित हुआ है कि रात के समय यात्रा करने से दुर्घटनाओं की संभावना काफी बढ़ जाती है। जब तक कोई आपातकालीन स्थिति न हो, जैसे फ्लाइट पकड़ना या किसी आपात स्थिति में शामिल होना। आधी रात को यात्रा करना टाला जा सकता है।
ड्राइवर की थकान और झपकी के खतरों को उजागर करना अत्यंत आवश्यक है। दुर्भाग्यवश, हमारी व्यवस्थागत विफलताएं इस समस्या को और बढ़ा देती हैं।
डाटा संग्रह में विफलता
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान प्रकोष्ठ (Transport Research Wing) की दुर्घटनाओं का विश्लेषण और रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन उनके डाटा संग्रह के तरीके ड्राइवर की थकान और झपकी को दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में शामिल करने में विफल हैं। यह चूक न केवल लापरवाही है बल्कि गैर-जिम्मेदाराना है, क्योंकि थकान से जुड़ी दुर्घटनाएं सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त हैं।
गौर करने वाली बात यह है कि मंत्रालय ने वर्ष 2015, 2016 और 2017 में थकान और झपकी से संबंधित दुर्घटनाओं का डेटा इकट्ठा किया था। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, इस महत्वपूर्ण अभ्यास को बंद कर दिया गया। क्यों? मजबूत आंकड़ों की अनुपस्थिति सरकार और जनता, दोनों को एक महत्वपूर्ण चेतावनी प्रणाली से वंचित कर देती है, जो सड़क हादसों को रोकने में मदद कर सकती थी।
सड़क विकास प्राधिकरण की जिम्मेदारी
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे के रखरखाव के लिए जिम्मेदार उत्तर प्रदेश राज्य एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) को भी इस त्रासदी का दोष साझा करना चाहिए। जब उनसे दुर्घटनाओं और उनके कारणों के डाटा के लिए पूछा गया, तो उन्होंने दावा किया कि ऐसा रिकॉर्ड केवल पुलिस थानों द्वारा रखा जाता है। यह अस्वीकार्य है। एक्सप्रेसवे का प्रबंधन करने वाली एजेंसी होने के नाते, UPEIDA पर यह जिम्मेदारी है कि वह दुर्घटनाओं पर नजर रखे, आवर्ती कारणों की पहचान करे और अपनी वेबसाइट पर वास्तविक समय में डाटा प्रकाशित करे। ऐसे मामलों में पारदर्शिता वैकल्पिक नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक जिम्मेदारी है।
इसके अलावा, UPEIDA ने प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा किए गए सुरक्षा ऑडिट पर कार्रवाई करने में विफलता दिखाई है। उदाहरण के लिए, केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) द्वारा तैयार की गई एक्सप्रेस-वे की ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। केवल उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप के बाद उन्होंने रिपोर्ट जारी करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन इसे अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है। ऐसी गोपनीयता विश्वास को कमजोर करती है और एक्सप्रेस-वे उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा को खतरे में डालती है।
सक्रिय उपायों की आवश्यकता
एक्सप्रेस-वे कनेक्टिविटी के लिए वरदान है, लेकिन इसकी सुविधाओं का लाभ सुरक्षा की कीमत पर नहीं होना चाहिए। UPEIDA को सक्रिय उपाय अपनाने होंगे, जैसे:
• ओवरस्पीडिंग और लेन अनुशासन की निगरानी के लिए अधिक कैमरे लगाना।
• दुर्घटनाओं और उनके कारणों पर वास्तविक समय में डाटा प्रकाशित करना ताकि सड़क उपयोगकर्ताओं को सतर्क किया जा सके।
• ड्राइवर की थकान का पता लगाने और चेतावनी जारी करने के लिए AI आधारित सिस्टम का उपयोग।
• एक्सप्रेसवे का नियमित रूप से ऑडिट करना और सिफारिशों को तुरंत लागू करना।
सामूहिक कार्रवाई का आह्वान
सड़क सुरक्षा किसी एक व्यक्ति या संस्था की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें ड्राइवरों, सड़क एजेंसियों और शासकीय प्राधिकरणों की सामूहिक भागीदारी आवश्यक है। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर हुई दुखद मौतें सभी हितधारकों के लिए एक चेतावनी के रूप में काम करनी चाहिए कि वे सुरक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता दें।
इस आधुनिक बुनियादी ढांचे के उपयोगकर्ताओं के रूप में, हमें केवल सुविधा की मांग नहीं करनी चाहिए, बल्कि जीवन रक्षक उपायों की भी मांग करनी चाहिए। तभी हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि ऐसी त्रासदियां दोबारा न हों और एक्सप्रेस-वे सभी के लिए सुरक्षित और प्रभावी यात्रा का साधन बना रहे।
-- (लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता, आरटीआई एक्टिविस्ट और सामाजिक चिंतक हैं।)
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