राजनीति का अखाड़ा बन रहा नेशनल चैंबर, संविधान समिति को लेकर विवाद से अनेक सदस्य खिन्न

आगरा, 01 मई। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स में विगत दिवस कार्यकारिणी की बैठक में हुए हंगामे को लेकर सदस्यों में भारी खिन्नता का भाव है। सदस्यों का कहना है कि चैम्बर आपसी राजनीति का अखाड़ा बनता जा रहा है। बैठक में संविधान समिति के गठन को लेकर विवाद इस कदर बढ़ा कि एक पूर्व अध्यक्ष के स्वर अत्यधिक तेज हो गए, जिससे कई मौजूद सदस्य असहज हो गए। 
कार्यकारिणी में तीन विषयों को विवाद का विषय बता कर पारित होने से रोका गया और अगली बैठक के लिए टाल दिया गया। कुछ सदस्यों के ही लगातार बोलने और टोकाटोकी करते रहने से नाराज एक सदस्य ने तो साफ कह दिया कि जब बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा है तो उन्हें बुलाया ही क्यों जाता है।
चैंबर में इस साल संविधान में संशोधन प्रस्तावित है और इसके लिए समिति बननी थी, जो संशोधन के सुझाव देगी। इस समिति का चेयरमैन बनने के लिए दो पूर्व अध्यक्षों में रस्साकशी थी। एक दावेदार को भरोसा था कि उन्हें यह पद मिल जायेगा, लेकिन दूसरे दावेदार भी इसके लिए अति इच्छुक थे।
कार्यकारिणी की बैठक से एक दिन पहले एक दावेदार ने अपने यहां सात लोगों के साथ बैठक कर कार्यकारिणी में समर्थन की मांग की। दूसरे गुट को यह पता लगते ही उसने भी अपने समर्थकों को तैयार कर लिया। 
यही गुटबाजी बैठक में जमकर चली। माहौल गर्म हो गया। एक दावेदार के भाई ने बैठक में तेज स्वर में कुछ ऐसी बातें कहीं, जिससे सभी असहज हो गए। अंततः यह गुट अपने अनुरूप निर्णय कराने में सफल रहा। आश्चर्यजनक रूप से एक दिन पहले समर्थन का वायदा करने वाले सात लोगों में से किसी ने भी अपने दावेदार का समर्थन नहीं किया। बल्कि चर्चा है कि बैठक के बाद इन सातों में से एक ने कह भी दिया कि हमने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। हम भी पुरानी बातों का बदला लेना चाहते थे।
बहरहाल "अपनों" से चोट खाए दूसरे दावेदार "साइलेंट मोड" में हैं। बुधवार की सुबह दो वरिष्ठ सदस्यों ने उनके निवास पर पहुंचकर परदे के पीछे चली राजनीति के बारे में बताया। इनमें से एक ने कहा कि वह चाहें तो संविधान समिति का अध्यक्ष बदला जा सकता है। लेकिन उन्होंने इस पेशकश से इंकार कर दिया।
दो खेमों में बंट चुका है चैंबर!
नेशनल चैंबर दो खेमों में बंट चुका है। पिछले कुछ साल से गाहे-बगाहे यह खेमेबंदी सामने आती रही है। पिछले चुनावों में भी यह दिखाई दी थी। कुछ लोगों ने प्रत्यक्ष तौर पर और कुछ लोगों ने परदे के पीछे रहते हुए अध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी का समर्थन और दूसरे का विरोध किया था। इसी गुटबाजी का दृश्य एक बार फिर परिलक्षित हुआ। कार्यकारिणी की बैठक में भी एक गुट ने तीन अन्य प्रस्तावों पर आपत्ति लगवा दी। कुछ आपत्तिकर्ताओं ने सामने न आकर एक बुजुर्ग सदस्य का भी सहारा लिया। संविधान समिति में भी अपने लोगों को सदस्य बनवाने की होड़ रही।
अब दूसरे गुट ने कहना शुरू कर दिया है कि तीनों प्रस्ताव अभी गिरे नहीं हैं, केवल टाले गए हैं उन्हें अगली बैठक में पारित करा लिया जायेगा और पिछले सालों में दूसरे गुट द्वारा बनाए गए सदस्यों की वैधता की भी जांच कराई जायेगी।
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